उपन्यास >> घाट का पत्थर घाट का पत्थरगुलशन नन्दा
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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।
लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी। सामने की खिड़की खुली थी। नीले आकाश पर तारे आंख-मिचौनी खेल रहे थे, परंतु उनके संकेतों को चंद्रमा की सुंदर चांदनी ने फीका कर दिया था। वह उठी और खिड़की के पास जा खड़ी हुई और बाहर की ओर देखने लगी। रात्रि के अंधकार में समुद्र के जल पर बिखरी चांदनी उसे बहुत ही भली लग रही थी। अचानक किसी के पांवों की आहट सुनाई दी। किसी ने धीरे-से कमरे में प्रवेश किया और दरवाजे में चिटकनी लगा दी। लिली संभली, शरमाई और मुंह दूसरी ओर फेरकर बाहर बिखरी हुई चांदनी को देखने लगी। आगन्तुक धीरे-धीरे पैर बढ़ाता लिली के समीप पहुंच गया। लिली ने लज्जा से सिर झुका लिया।
गुलशन नन्दा
(मृत्यु 16 नवम्बर 1985)
हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार तथा लेखक थे जिनकी कहानियों को आधार रख 1960 तथा 1970 के दशकों में कई हिन्दी फ़िल्में बनाई गईं और ज़्यादातर यह फ़िल्में बॉक्स ऑफ़िस में सफल भी रहीं। उन्होंने अपने द्वारा लिखी गई कुछ कहानियों की फ़िल्मों में पटकथा भी लिखी। उनके द्वारा लिखी गई कुछ हिट फ़िल्मों के नाम हैं- काजल, पत्थर के सनम, कटी पतंग, खिलौना, शर्मीली इत्यादि हैं।
इसके आलावा उनके लिखे कुछ उपन्यासों के नाम हैं - अजनबी, अन्धेरे चिराग, आसमान चुप है, कटी पतंग, कलंकिनी, काँच की चूड़ियाँ, काली घटा, गुनाह के फूल, गेलार्ड, घाट का पत्थर, चिनगारी, जलती चट्टान, झील के उस पार, टूटे पंख, डरपोक, तीन इक्के, तीन रंग, देव छाया, नीलकंठ, पत्थर के होंठ, पिंजरा, प्यासा सावन, भँवर, माधवी, मेंहदी, मैं अकेली, रूपमती, वापसी, सांवली रात, सितारों से आगे, सिसकते, सूखे पंड़ सब्ज़ पत्ते आदि।
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